Tuesday 28 August 2012

स्त्री अस्मिता के खिलाफ बाजार की बर्बर "फेयर एंड लवली" हिंसा


18 अगेन की यह हिंसा 

 



"एटीन अगेन...!" बाजार में पेश यह नया उत्पाद है उन महिलाओं के लिए जो पच्चीस-तीस-पैंतीस या शायद उसके ज्यादा उम्र की हो चुकी हैं। इस उत्पाद के प्रचार के लिए दो रूपकों का इस्तेमाल हो रहा है। पूरे पन्ने के अखबारी विज्ञापन में एक पूरा खिला गुलाब और (इसके इस्तेमाल के बाद) नीचे गुलाब की "सख्त" कली। यह क्रीम "पूरे खिले गुलाब" को "कली" बनाती है। सीधे और साफ शब्दों में कहें तो यह क्रीम आई है महिलाओं के जननांग के ढीलेपन को खत्म करने के लिए। टीवी पर इसके विज्ञापन में एक महिला गाना गाती है- "आई एम एटीन अगेन, फीलिंग वर्जिन अगेन।"

यानी अपनी "वर्जिनिटी गंवा चुकी" महिलाओं के लिए "वर्जिनिटी" की वापसी का इंतजाम। महिलाओं की अस्मिता के खिलाफ बाजार का यह नया और बेहद बर्बर मजाक है। अव्वल तो किसी भी समाज में "वर्जिनिटी" की अवधारणा ही स्त्री-विरोधी है। अरब से लेकर यूरोप तक इसी "कौमार्य" को बचाए रखने के लिए सदियों से महिलाओं को सींखचों में कसा गया है, उन्हें सिर्फ एक देह बनने के लिए मजबूर किया गया है। यह सामंती कुंठा आज के कथित आधुनिक युग में इस तरह सामने आई है जो सारे नारी आंदोलनों, स्त्री को देह नहीं मानने वाले संवेदनशील और चेतन समुदाय को मुंह चिढ़ा रही है।

अभी महिलाओं के जननांगों को गोरा बनाने वाली क्रीम ने बाजार में पांव रखे ही थे कि अब उसके "ढीलेपन" को खत्म करने का भी डंका बज गया। टीवी पर मॉडल गाने गा रही हैं, अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन है जो खिले गुलाब को कली बनाने की वकालत करता और "भरोसा" दिलाता है। इसका मूल स्वर यह है कि "चलो...! अपने पार्टनर के साथ अच्छा-खासा वक्त गुजार चुकी महिलाओं, अब तुम हीन भावना से ग्रस्त हो जाओ, क्योंकि "वर्जिन" होना सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी है, एक पैंतालीस साल का पुरुष अपनी पत्नी से मांग कर सकता है कि वह फिर से कली बन जाए। उम्र का जो असर उस पर आया है, अब वह स्वीकार्य नहीं है।

"अब" इसलिए कि जब "कली" का विकल्प उपलब्ध होने के सपने दिखाए जा रहे हैं तो  "गुलाब" सरीखी महिलाएं क्यों स्वीकार की जाएं! "गुलाब" से "कली" की ओर वापसी नहीं करने वाली महिलाओं को यह विज्ञापन, उसके उत्पादक यह संदेश (धमकी) देते हैं कि अब अगर  "कली" नहीं बनीं तो अपने पार्टनर से खारिज होने को तैयार रहो। जो क्रीम "फूल" से "कली" बनाने के फर्जी दावे करे, कुदरत का उलटा चक्र चलाए, वह महिला के शरीर के साथ-साथ उसके समूचे मानसिक ढांचे पर कितना खतरनाक असर डालेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन मर्दों की कुंठा के आगे महिलाओं की अस्मिता की क्या, उनकी सेहत तक की परवाह न अब तक की गई है और न की जाएगी। व्यवस्था हमेशा सत्ताधारी वर्गों की, सत्ताधारी वर्गों द्वारा और सत्ताधारी वर्गों के लिए होती है। शासित उसके लिए महज उपभोग की वस्तु हैं।

जननांगों को गोरा बनाने की क्रीम के खिलाफ कुछ महिला संगठनों ने विरोध भी जताया था। कई अखबारों और वेबसाइटों पर छपे लेखों में गुस्सा भी जाहिर किया गया। लेकिन अब तो लगता है कि इस तरह के उत्पादों की कंपनियां चाहती ही यही हैं कि उनके उत्पादों पर हो-हल्ला हो, खबरिया चैनलों पर बहस हो, ताकि औपचारिक विज्ञापनों के इतर भी उत्पाद का प्रचार हो। इधर देखा गया है कि ऐसे उत्पादों की उत्पादक कंपनियों से जुड़ी विज्ञापन एजेसियां पत्रकारों को प्रेरित करती हैं, उन्हें इसके लिए अच्छा-खासा लाभ मुहैया कराती हैं कि अच्छी या बुरी, इसकी खबर बनाओ और इस पर चर्चा चलाओ। पक्ष या विपक्ष, किसी भी तरह इसे चर्चा के केंद्र में लाओ। पत्रकार खुद महिला संगठनों को फोन करते हैं और कहते हैं कि इस तरह का उत्पाद बाजार में आया है, इस पर आपका क्या कहना है। महिला संगठनों की प्रतिक्रिया होती है कि "जी... ये तो महिला विरोधी है", और यह खबर छपती है। लेकिन अब सिर्फ महिला विरोधी कह कर भर्त्सना करने और विरोध-प्रदर्शन करने का भी वक्त खत्म हो गया। अब इन पर खूब "चर्चा" होती है, इसके नकारात्मक पहलुओं की बात की जाती है, लेकिन ऐसे उत्पादों और उनके विज्ञापनों के खिलाफ कोई कानून नहीं बनता है। इसे उपभोक्ताओं की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है कि वे अपनाएं या खारिज करें।

बाजार के खिलाड़ी भारतीय समाज में पसरी कुंठाओं को बेचना बखूबी जानते हैं। इसमें सरकार भी अपना "अमूल्य" सहयोग देने में कोई कमी नहीं करती और मान कर चल रही है कि उसके नागरिक पूरी तरह परिपक्व और चेतना से लैस हो गए हैं जो ठगने और भ्रमजाल में फंसाने की कोशिश करने वालों को करारा जवाब देंगे। दरअसल, यह सरकारी चाल समाज की उस व्यवस्था को बनाए रखने की साजिश है, जिसमें उलझ कर कोई व्यक्ति या स्त्री अपने दिमाग को बाजार के हवाले कर दे और उस व्यवस्था में अपने शोषण-दमन और व्यक्तित्व के हनन को अपनी नियति मान कर मरती-जीती रहे।

स्वीकार्य होने के लिए न केवल महिलाओं का रंग गोरा होना चाहिए, बल्कि उसके निजी अंगों के रंग भी गोरे और अब उससे भी आगे "वर्जिन" होने चाहिए। विज्ञापनों में अब तक महिलाओं के लिए जो सबसे ज्यादा ग्लैमरस कॅरियर के विकल्प दिखाए गए हैं, वह है एयर होस्टेस का। गोरा बनाने की एक क्रीम तो लड़कियों को सिर्फ एयर होस्टेस बनाने के सपने दिखाती है। एक विज्ञापन में लड़की कहती है कि उसका सपना है आसमान में उड़ने का,  इसलिए वह एयर होस्टेस बनना चाहती है। वह क्रीम लगाती है और एयर होस्टेस बन जाती है। वह कहती है कि एयर होस्टेस बनने के बाद अब पूरा शहर उसे जानता है।

मुझे नहीं लगता कि हममें से कोई अपने शहर की किसी लड़की को महज इसलिए जानता है कि वह एयर होस्टेस है। फिर विज्ञापनों में एयर होस्टेस के कॅरियर का इतना महिमामंडन क्यों? काम तो किसी भी जेंडर के लिए कोई भी बुरा नहीं, लेकिन क्या यह एक ऐसा कॅरियर है जिसके लिए लड़कियां सपने देखें और उसे बचपन से इसके लिए तैयार किया जाए? ऐसा कोई विज्ञापन नहीं देखा है जिसमें कोई लड़का केबिन क्रू का सदस्य बनने के लिए बचपन से सपने देख रहा है। फिर यह विमान यात्रियों की सेवा का सपना "खूबसूरत" लड़कियों की आंखों में ही क्यों तैरता है? वैसे भी एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस जैसी सरकारी विमानन कंपनियों के इतर ज्यादातर निजी विमानन कंपनियों में एयर होस्टेस की नौकरियां सुरक्षित नहीं होने के साथ जोखिम भरी भी हो चुकी हैं। जोखिम हवाई जहाजों में ड्यूटी की नहीं, आसपास मौजूद पुरुष कुंठाओं से। निजी विमानन कंपनियों में विमान परिचारिकाओं के शोषण की भी खबरें लगातार आती रही हैं।

हाल ही में गीतिका शर्मा की खुदकुशी की परतें खुल कर आ रही हैं। गीतिका भी महज अठारह साल की उम्र में विमान परिचारिका बनी थी और मुझे लगता है कि उसके शहर के साथ पूरे देश ने उसे तब जाना, जब वह अपने उस कंपनी के मालिक के शोषण से तंग आकर खुदकुशी कर चुकी थी। पूर्व एयर होस्टेस गीतिका की खुदकुशी की खबर के साथ मेरे दिमाग में फेयर एंड लवली का विज्ञापन गूंज रहा था- "मेरा पूरा शहर मुझे जानता है...।"

गोरी, छरहरी के बाद महिलाओं के लिए अब बाजार की नई चुनौती है "वर्जिन" जैसा अहसास। लेकिन "वर्जिन" होने के इसी सुख के लिए कोई कांडा जैसा शख्स अपनी पत्नी से ऊब कर किसी गीतिका को अपने जाल में इसलिए फंसाता है कि वह आकर्षक और "अठारह" की है। "फेयर एंड लवली" जैसे उत्पाद ने हमें गीतिका शर्मा का त्रासद अंत दिया है, "एटीन अगेन" जैसे उत्पाद का असर देखना अभी बाकी है।

गोरा बनाने की क्रीम से लेकर "वर्जिन" यानी "अक्षत यौवना" बनाने की इस क्रीम तक के जरिए बाजार ने महिलाओं को एक देह के रूप में ही स्थापित करने की कोशिश की है, जो पहले ही धर्म की मारी केवल देह के रूप में देखी जाती रही है।