Monday 7 January 2013

तो मिशेल ओबामा इसलिए महान हैं...



हाल में बराक ओबामा के लगातार दूसरी बार अमरीका के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पश्चिमी मीडिया के साथ भारतीय मीडिया भी झूम रहा था. लेकिन अमरीकी मीडिया ने और उसके बाद वहां से प्रेरित और अनुवादित होकर भारतीय मीडिया ने भी एक खास चीज उछाली. वह थी एक समर्पित पत्नी के रूप में मिशेल ओबामा का महिमामंडन. यों तो यह जुमला काफी घिसा-पिटा हो चुका है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत का हाथ होता है, लेकिन पश्चिम का मीडिया जब इस बात को गरिमामय तरीके से उछाल रहा है तो जरा सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ भी बात कर लेनी चाहिए.

तो सबसे पहला सवाल मेरी ओर से यही है कि विश्व को एकध्रुवीय बनाने वाले सुपर पावर अमरीका को पहली महिला राष्ट्रपति कब मिलेगी? दो-ढाई सदी की आजादी के बाद रंगभेद की जंग को जीत कर एक "अश्वेत" ने चार साल पहले ही दुनिया को अपनी ताकत का अहसास करा दिया था. लेकिन एक महान बदलाव के बाद के ताकतवर माहौल में भी महिला की मौजूदगी एक गरिमामयी पत्नी के ही रूप में ही क्यों उभारा जा रहा है? वहां राष्ट्रपति पद की तो बात छोड़ दें, अमरीकी कांग्रेस में भी महिलाओं की संख्या अब तक संतोषजनक भी नहीं है.

इस संदर्भ में समाचार एजेंसी ‘भाषा’ की खबर पर गौर करना चाहिए-अमरीका की प्रथम महिला से जब कोई सवाल करता है कि ‘क्या है मिशेल ओबामा’ तो उनका एक ही जवाब होता है कि वे सबसे पहले मालिया और साशा की मां हैं. लेकिन एक मां, समर्पित पत्नी, वकील और लोक सेवक से पहले की उनकी जिंदगी के बारे में पूछा जाए तो वे खुद को सिर्फ ‘फ्रेजर और मारियान रोबिंसन की बेटी’ बताती हैं. मिशेल ने वाइट हाउस के झरोखे से अमरीका की प्रथम महिला की जो छवि पेश की है, वह एक दबंग और महत्त्वाकांक्षी महिला की नहीं, बल्कि एक प्यारी-सी मां और एक पूर्ण समर्पित पत्नी की है. और उनकी इस छवि ने भी बराक ओबामा के व्यक्तित्व को नया आयाम देने में सकारात्मक भूमिका अदा की है.

यहां मैं उस प्रवृत्ति के मुखर होने की बात कर रही हूं, जो महिलाओं को मिली थोड़ी-बहुत उपलब्धियों को छीन कर उन्हें घर की चारदिवारी में कैद देखना चाहती है. खबरों में अमरीका की प्रथम महिला की समर्पित पत्नी की भूमिका के बारे में कहा गया कि "मिशेल की इसी छवि को अमरीकी पसंद करते हैं और यही कारण है कि अमरीकी ओबामा से कहीं अधिक मिशेल के मुरीद हैं. शुरुआत में मिशेल को घमंडी और गुस्सैल महिला के तौर पर देखा गया. लेकिन 2008 में डेनवर में हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन में जब मिशेल ने कहा कि वे यहां एक पत्नी, एक बेटी और एक मां के तौर पर खड़ी हैं तो यहीं से उनकी छवि बदलनी शुरू हो गई.

बीबीसी ने पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान ओहायो यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैथरीन जैलीसन के हवाले से लिखा था कि जिस दिन पहली बार ओबामा ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, तभी से मिशेल ऐसी प्रथम महिला के रूप में उभरीं जो अमरीका देखना चाहता था- एक समर्पित पत्नी और एक प्यारी मां. देश की अर्थव्यवस्था की खराब हालत के मद्देनजर जब गैलअप के सर्वेक्षण में ओबामा की रेटिंग गिरने लगी तब भी मिशेल की रेटिंग लगातार बढ़ रही थी. मई 2012 के सर्वेक्षण में ओबामा की रेटिंग बावन फीसद थी तो मिशेल की साठ फीसद. विश्लेषकों का कहना है कि लोगों में मिशेल का आकर्षण बरकरार है और हाल के चुनावी नतीजे साफ दर्शाते हैं कि प्रचार अभियान में मिशेल की "मेहनत" और "गरिमामयी" व्यक्तित्व से ओबामा की चुनावी जंग की राह आसान होती गई.

जीत के बाद ओबामा के सार्वजनिक तौर पर अपनी पत्नी मिशेल को इज्जत देने से मीडिया मोहित है. यह मीडिया उस वक्त हिलेरी क्लिंटन पर भी मोहित हुआ था, जब उन्होंने खुद को एक अच्छी पत्नी साबित करते हुए सेक्स स्कैंडल में लिप्त होने के बावजूद अपने पति बिल क्लिंटन को माफ कर दिया था. जबकि बिल क्लिंटन बाकायदा जांच के बाद दोषी पाए गए थे और उन्होंने माफी भी मांगी थी.

हमारे भारत में भी इससे कुछ अलग नहीं होता है. चाहे वह रविकांत शर्मा की पत्नी मधु शर्मा हो या भंवरी देवी की जिंदगी बर्बाद करने वाले मदेरणा की पत्नी. इसके अलावा, अलग-अलग मौकों पर हम अनेक वैसी "महान" पत्नियों को सुर्खियां बनते देखते रहे हैं जो अपने पति के अपराधों में लिप्त होने के बावजूद उनके बचाव का एक ताकतवर ढाल बनी रहीं. हां, कभी-कभी किसी झुग्गी बस्ती से कोई खबर जरूर आ जाती है कि किसी महिला ने अपने पति के खिलाफ थाने में रपट लिखवाई, क्योंकि वह किसी अपराध में लिप्त था.

भारत में ऐसे आरोप लगने के बाद आमतौर पर सबसे पहले पत्नियां ही पति के बचाव में आगे आती हैं. गोपाल कांडा की पत्नी कहती है कि उसका पति तो गीतिका को बेटी की तरह मानता था. बलात्कार के आरोपी उत्तर प्रदेश के एक विधायक की पत्नी ने तो आरोप लगने के तुरंत बाद मीडिया के सामने यहां तक कह डाला कि उसका पति तो नपुंसक है, वह किसी का बलात्कार कैसे कर सकता है. यानी वह भारत हो या अमरीका दोनों जगह पत्नी अगर पति को "महान" बनने में मदद करती है तभी वह महान है, वरना घमंडी और रास्ते से भटकी हुई. विवाहित महिला का पहला फर्ज पति का तन-मन-धन से साथ देना होता है. पति की उन्नति में ही उसकी उन्नति है.

अमरीका में एक ओर जहां घरेलू पत्नी की शान में कसीदे पढ़े जा रहे हैं, वहीं चुनावों के दौरान आए कुछेक बयानों से वहां की सामाजिक धारणाओं का पता भी चलता है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रोम्नी के एक साथी ने तो यहां तक कह डाला कि बलात्कार के बाद ईश्वर की मर्जी से ही गर्भ ठहरता है. यानी किसी औरत का किसी की पत्नी बनना या उसके साथ बलात्कार होना आधुनिक अमरीका में ईश्वर की मर्जी है.

विकास के तमाम औजारों से लैस अमरीका की महिलाएं घर की दहलीज के पार बहुत पहले से वहां के सार्वजनिक जीवन में एक समांतर शक्ति के रूप में अपनी क्षमताएं साबित कर चुकी थीं. लेकिन आधुनिकता का सफर तय करते हुए अमरीका में अब उसे फिर घर की शोभा बनाने के लिए अच्छी पत्नी और अच्छी मां के तमगों से महिमामंडित किया जा रहा है. यानी विकास की राह में दो कदम साथ-साथ चलने के बाद अब अमरीका की स्त्री अपने व्यक्ति बनने की प्रक्रिया में एक पायदान वापस नीचे उतर कर फिर दोयम के दरजे की ओर अग्रसर है. टूटते परिवार, समलैंगिक रिश्तों की बाढ़ के कारण अमरीकी समाज फिर उसी सामाजिक अवस्था की वकालत करता नजर आ रहा है, जिसमें औरतें घर की चहारदिवारी के भीतर बच्चे पालें और पुरुष बाहर की दुनिया का अधिकारी बने.

मिशेल के पत्नी-रूप का महिमामंडन उसी आग्रह का नतीजा और तकाजा है कि "श्रीमती जी, मेरी बच्चों की प्यारी मां, दरअसल, आप घर-परिवार संभालते हुए ईश्वर की मर्जी निभा रही हैं. हम राष्ट्रपति बने हैं तो आपकी खातिर. हम दुनिया को संचालित करने वाले हथियार और कारोबार संभालेंगे और आप बच्चों को देखिए, फैशन के नए मानक या आइकॉन बनिए. आप ऐसे कपड़े पहनिए की दुनिया आपकी सादगी पर मर मिटे या फिर आपको महज एक गोश्त समझे. आप पहनने-ओढ़ने, पति-बच्चे संभालने में व्यस्त रहिए." यही भगवान की मर्जी है और आधुनिक अमरीका की भी.

सवाल है कि एक "घर" बनने के लिए जिन तत्त्वों की जरूरत होती है, उनमें कौन-सा ऐसा है जो केवल स्त्री के ही जिम्मे होना चाहिए या फिर उसे केवल स्त्री ही निबाह सकती है? एक नवजात बच्चे को दूध पिलाने के अलावा दुनिया का कौन-सा ऐसा काम है जो "घर" बनाने-बचाने के लिए एक पुरुष नहीं कर सकता? चौखटे के बाहर का कौन-सा ऐसा काम है जिसे समान सक्षमता के साथ पूरा कर सकने में स्त्री असमर्थ है? यह बचकानी और पुरानी बातें हैं. लेकिन आगे की ओर दौड़ते समाज को वापसी की पटरी पर दौड़ाने के खिलाफ आईना हैं. "घर" अगर परिवार-समाज, देश-दुनिया की बुनियाद है तो उसे अपने और मजबूत होने के लिए केवल स्त्री की ही बलि क्यों चाहिए?

मेरा खयाल है कि कोई भी व्यवस्था बन चुकी सत्ता अपनी मूल ताकत को बचाए रखने के लिए "लचीलेपन" की सभी हदों को पार सकती है. इसमें तात्कालिक तौर पर अपने प्रतिद्वंद्वी की अधीनता तक स्वीकार कर लेना दरअसल एक औजार है. सामने वाले की हीन या दोयम हैसियत का महिमामंडन उसके भीतर की बगावत को कुंद करने के ही प्राथमिक शिगूफे हैं. यह "व्यक्तिकरण" की अधकचरी प्रक्रियाओं का ही नतीजा है कि समाज में वंचना के शिकार वर्ग सामाजिक-राजनीतिक सत्ताओं के इस झांसे में आ जाते हैं और "भावनात्मक ब्लैकमेलिंग" के बदले खुशी-खुशी अपने अधिकार छोड़ने को तैयार हो जाते हैं.

दुनिया के स्तर पर पितृसत्ता और भारतीय संदर्भों में पितृसत्ता सहित सामाजिक सत्ताओं ने इस "भावनात्मक ब्लैकमेलिंग" के हथियार का बखूबी इस्तेमाल किया है. बाल-बच्चों और पति के सुख से हरा-भरा "घर" दुनिया की बुनियाद है; "घर" बनाने-बचाने का मतलब दुनिया को स्वर्ग बनाना है और यह काम केवल स्त्री ही कर सकती है! क्या दुनिया के पुरुष घर को बनाने-बचाने के मोर्चे पर खुद को नाकाबिल मानते हैं? या फिर वे जनतंत्र के पर्याय हो गए हैं?

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. सत्ताधारी व्यवस्थाएं भली प्रकार जानती हैं कि चारदिवारी के भीतर केवल कैदी रहते हैं. इसलिए कैद का महिमामंडन ही कैदी को अपनी गुलाम अवस्था में भी गर्वबोध कराएगा. "परिवक्व" सत्ताएं जानती हैं कि शासन करने के लिए अपने सामने खड़ी होने वाली समस्याओं को एक साथ कई बिंदुओं पर साधना होता है. एक खास तरह के मनोविज्ञान की रचना अपने-आप सत्ताओं की मंशा के हिसाब से संचालित होती रहती हैं. इसके अलावा, स्त्री की परंपरागत छवि का महिमांडन "उदारता" की वह राजनीति है जिसका मकसद स्त्री के विरुद्ध वंचना की व्यवस्था को कायम रखना है.

तो क्या मिशेल ओबामा अपने पति की तारीफ के तंतुओं के असली स्रोत को देख पा रही हैं? वहां तक निगाह जाना बहुत मुश्किल तो नहीं है!

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